Saturday, March 14, 2009

वो आखरी दिन मैसूर के ...


अगस्त'०८ में जब मोरिशस जाने की बात पहली बार हुई तो खुशी का ठीकाना न था ... पता था हमारे लिए बाहर जाने की उम्मीद काफ़ी कम थी , मगर बिल्कुल न थी ऐसा भी नही था ... जैसा की बोला गया था वैसे मैंने मोरिशस के बारे में जानकारी जुटाईऔर अपनी तरफ़ से जाने की हरी झंडी दिखा दी ... बात इसके बाद एक ठंडे बस्ते में चली गई और मै भी अपनी जगह चुप चाप समय का इंतज़ार करने लगा ...
अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में मुझे जाने की हरी झंडी मिली... जल्दी जल्दी से हम दोनों (मैं और निशु ) ने घर का समान ठीकाने लगया ... वास्तव में श्री-मति जी ने समान बाँधने में जो फुर्ती और कुशलता दिखाई , वो तारीफ़ के काबिल थी ...
खैर , ९ नवम्बर'०८ का दिन आ पहुँचा जिस दिन हमे मोरिशस के लिए निकलना था ... लोबो आंटी (हमारे पड़ोसी ), अपने दोस्तों (अभिजीत , अभिषेक , वैभव , लिजा और मधु ) को मिल कर और उनकी शुभकामनाये ले कर हम दोनों निकल पडे अपने नये सफर को...
घर पर भी सभी को जाने का पता था और सभी खुश थे ... सब को छोड़ कर जाने से दिल भारी ज़रूर था , मगर ऐसे अवसर नही छोडे जाते यही बात दिल में लिए हम खुश थे ...

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