Tuesday, May 5, 2009

क्रिसमस मोरिशस में ...


बाज़ार में इनदिनों बहुत चहल पहल थी ... सजावट तो इतनी नही देखी या कहूँ की "रोज़ हिल " के आस पास के इलाके में तो कम से कम इतनी नही थी ... सभी सुपर मार्केट लोगो से भरे हुए थे और जम कर स्कीम्स चलाई जा रही थी ... वाज़िब था क्योंकि विश्वस्तरीय त्यौहार क्रिसमस जो आ रहा था ... मोरिशस में लगभग ३०% लोग इसाई धर्म को मानने वाले है ... वैसे भी यहाँ बहुत बड़ी संख्या में लोग ऐसे है वो हर धर्म / त्यौहार को समान रूप से मनाते है और ये वास्तव में सर्व -धर्म सम्मान की भावना है जो यहाँ व्याप्त है ... हमने भी सुना था की क्रिसमस काफ़ी धूम से मनाया जायगा ...
क्रिसमस का दिन आया और जैसे में सोचा हुआ था मैं सुबह नहा कर पास एक चर्च " सेंट पेट्रिक" गया ... चर्च जा कर मैं थोड़ा अचंभित हुआ ... चर्च में भीड़ तो बहुत थी ... पूरा चर्च श्रधालुओं से भरा हुआ था मगर कोई विशेष सजावट नही थी ... खैर मैं थोडी देर वहां रुका और अपने तरीके से प्रार्थना कर के वापस आ गया ...
दोपहर को करीब ३:०० बजे हम दोनों बहार घुमने और चर्च की सजावट देखने निकले ... लगभग एक - डेढ़ घंटा हम इधर उधर घुमे और आस पास के कुछ चर्चों को देखा ... देख कर हमारा आश्चर्य कम न हो कर और बढ़ गया ...
हमे किसी भी चर्च पर कोई सजावट नही मिली और तो और कुछ चर्च तो बंद भी थे ... पता नही ऐसा क्यों था ... मगर ये आशा के विपरीत था ... इस के साथ एक और आश्चर्य की सभी मुख्य बाज़ार भी बंद थे ...
घूम फ़िर कर हम वापस आए और नव वर्ष के बारे में सोचने लगे ... सुना था नव वर्ष भी यहाँ बहुत धूम से मानता है ... बस के हफ्ते का और इंतज़ार और नव वर्ष का भी राज़ खुलने वाला था ...
अरे मैं तो बताना भूल ही गया की हम लोग ऑफिस की तरफ़ से क्रिसमस पर एक लंच के लिए गये थे ... उस चाइनीस रेस्टोरेंट की सजावट का एक फोटो उपर लगा है ...

Sunday, May 3, 2009

सैर माउंट च्वासी की ...


दिसम्बर का महीना अलविदा कह चुका था और साल २००९ का स्वागत चल रहा था ... नये साल के स्वागत के लिया हमारा निशाना था "माउंट च्वासी" बीच ... यह बीच देश की राजधानी पोर्ट लुईस के उत्तर - पश्चिम में बस से लगभग ४५-५० मिनट्स की यात्रा पर है ... पोर्ट लुईस के दुसरे बस अड्डे जहाँ से उत्तर दिशा में जाने की बस मिलती है वहां से आप यहाँ जाने की बस ले सकते हैं ... टी .बी .एस नाम से ये बस सुविधा उपलब्ध है ...

चूँकि ये बीच रोज हिल से काफ़ी दूर है हम थोड़ा जल्दी लगभग ८:०० बजे घर से निकले ... लगभग ५० मिनट्स में हम पोर्ट लुईस के मुख्य बस अड्डे पहुंचे और वहां से १५ मिनट्स पैदल चल कर दुसरे बस अड्डे जहाँ से उत्तर दिशा में जाने की बस मिलती है ... यहाँ से टी .बी .एस की बस ले कर अपनी यात्रा शुरू की ... यात्रा उम्मीद से कुछ ज्यादा थी ... रास्ते में ३ /४ बार संचालक से स्टाप के बारे में पूछा ...

आप को एक बात बताना चाहूँगा ... मोरिशस में बस रोकने के लिया हर सीट पर एक बटन लगा होता है जो चालक सीट के पास एक घंटी से जुडा होता है ... अपना बस स्टाप आने पर आप बटन दबा दे और चालक गाड़ी रोक देगा ... जब तक सभी उतरने वाली सवारी उतर नही जाती, नीचे से सवारी उपर नही चढ़ती ... और यहाँ के लोग भी बहुत मददगार है आप को रास्ता बताने में ...

खैर १०:१५ के पास हम लोग बीच पर पहुँच गये ... जैसा सुनावैसा ही पाया ... यह बीच बहुत ही भीड़ भाड़ वाला था ... यह बीच वाटर स्पोर्ट्स के लिया भी मशहूर है ... यहाँ पर आप बड़ी नाव में लोगो को समुन्द्र के बीच "सन बाथ" लेते देख सकते है तो कोई "वाटर स्की" करते ... यहाँ पानी एक दम साफ़ है और रेत भी एक दम सफ़ेद है और पैरो में चुभता भी नही ... धुप से बचने के लिए बहुत सारे पेडों की छाव ... जन सुविधाए भी पास ही उपलब्ध है ... खाने के लिएछोटा मोटा सामन भी आसानी से मिल जाता है ... हम ने यहाँ पर ३ /४ घंटे बडे मजे में बिताये ... चूँकि पोर्ट लुईस जल्दी बंद हो जाता है इसलिए हम लोग लगभग २:३० बजे वापस चल दिए ... लगभग ५:०० बजे दोनों घर आ लगे ... वास्तव में अच्छा दिन बिता ...

Saturday, April 18, 2009

मैं मोरिशस रेडियो पर ...

कुछ दिन हुए ऑफिस के एक मित्र वशिष्ट ने बातो बातो में मुझ से क्रिकेट के बारे में पूछा कि मुझे इसके बारे में कितना पता है... मैंने एक लाइन में जबाब दिया क्रिकेट भारतियों के खून में है ... आप को बता दूँ मोरिशस में फुटबाल प्रमुख खेल है और पिछले कुछ २ / ३ सालो में क्रिकेट को बढावा देने के लिए कुछ कदम उठाये गये है और कुछ टीम्स बनाई गई है ... मेरी बात सुनने के २ / ४ दिन बाद उसने मेरे सामने एक प्रस्ताव रखा और कहा " क्या मोरिशस रेडियो पर जाओगे ??? क्रिकेट के बारे में कार्यक्रम में हिस्सा लोगे ?"... मैं थोडा हक्का बक्का रह गया ... कारण मैंने कभी रेडियो पर जाने के बारे में सपने में भी नही सोचा था ऑर इस समय मैं क्रिकेट के टच में बिलकुल भी नही था ... सो पहली बार मैंने उसको मना कर दिया ... अगले दिन रात को उसका फ़ोन आया और उसने अरविन्द ( वशिष्ट के एक दोस्त ) से बात करवाई जो कि रेडियो पर उस कार्यक्रम का संचालन करते है ... उन से कार्यक्रम का थोड़ा सा पता चला... मैं अब भी कुछ नर्वस सा था तो अगले दिन उन से बात कर के मेरी तरफ़ से वो उस कार्यक्रम में क्या एक्स्पेक्ट करते है ये जानने की कोशिश की ... मेरा डर बस इतना था की मेरे कारण उनका कार्यक्रम खराब न हो ... सब तसल्ली होने पर मैंने हाँ कर दी ...
निर्धारित दिन १८ अप्रैल को मैं शाम ६:०० बजे मोरिशस रेडियो स्टेशन पहुँच गया ऑर अरविन्द से मुलकात की ... वहां जा कर अरविन्द ने बताया कि यह कार्यक्रम संगीत के साथ खेल के बारे में बातचीत का कार्यक्रम है ... उन्होंने थोडा सा दिशा निर्देश भी दिया कि कैसे बात को आगे बढाना है ... अब तक मेरी नेर्वेस्नेस भी कम हो गई थी... सही ६:३० पर कार्यक्रम शुरू हुआ ... उन्होंने मेरा परिचय करवाया ऑर मैंने भी " हेल्लो मौरिस " कह कर सब सुनने वालो का अभिनन्दन किया ... करीब ४५ मिनट्स तक मैं कार्यक्रम में था जिस में हम ने भारत के क्रिकेट को ले कर लोगो की भावनाओं के बारे में , आई -पी -अल के बारे में , टी -२० क्रिकेट ऑर मौजूदा क्रिकेट टीम के बारे में बात की... समय कैसे गुजर गया पता ही नही चला ...
अरविन्द ने सहायक - संचालक नीतिश ने कार्यक्रम में मेरी पसंद के कुछ गाने भी चलाए जिस में से आशिकी फ़िल्म का " धीरे धीरे से मेरी जिन्दगी में आना " ये गाना मैंने अपनी बेगम - साहिबा के लिए चल वाया ...
वास्तव में एक अनूठा अनुभव था ये ... वशिष्ट ऑर अरविन्द को बहुत बहुत शुक्रिया ये अवसर देने के लिए ...

Friday, April 17, 2009

सैर " फ्लिक -एन -फलक " की ...


पहला हफ्ता ऑफिस जाने और आ कर घर ढूँढने में गुजर गया ... किस्मत ने साथ दिया और जल्दी ही एक अपने हिसाब का घर मिल गया और हम वहां रहने चले गये ... यह घर मोरिशस के "रोंज हिल " इलाके में था... पहले दो तीन घर का सामान जुटाने में लग गये और घर थोड़ा सा सेट हो गया था ...
अब अगला सप्ताह अंत आया तो घूमने जाने की बारी थी ... मकान मालिक से बात करने से पता चला " फ्लिक -एन -फलक " सब से पास का समुन्दर बीच है , सो हमने वहां का रुख किया ... यह बीच मोरिशस के पश्चिम में है और राजधानी "पोर्ट -लुईस" के काफ़ी करीब ... पास के बस स्टेशन "कुत्रे बोर्नेस " बस ले कर हम दोनों लगभग ४५ मिनट्स में बीच पहुँच गये ... मोरिशस में सड़क आम तोर पर कम चौडी है और मोड़ काफ़ी त्रिव है जिस कारण गाडिया बहुत तेज न चल कर काफ़ी सावधानी से चलती है ...
बीच पर पहुँच कर उसकी खूबसूरती ने मन मोह लिया ... पानी का रंग एक दम नीला था और एक दम से साफ़ पानी ... सही है मोरिशस के बीचों की तारीफ़ यों ही नही की जाती ... वहां पर काफ़ी लोग आए हुए थे जो की अपने अपने तरीके से बीच पर मजा कर रहे थे ... हम दोनों बिना किसी तैयारी के गये थे तो थोड़ा समय बिता कर वापस घर आ गये ... परन्तु इस कम समय में भी हम ने अच्छा अनुभव हुआ और वहां पर मोरिशस का लोक संगीत "सेगा " भी सुनने को मिला ...
ये बीच अपने शांत पानी , कोरल . पाम के पेड़ और रेत के लिए मशहूर है ... वास्तव में देखने लायक है ...,

Sunday, March 22, 2009

पहला दिन मोरिशस मे...

गेस्ट हाउस पहुँचने पर उसके मालिक मिस्टर वादामुट्टू ने हमारा स्वागत किया... और इस स्वागत के दौरान मोरिशस के "लाइफ स्टाइल " के बारे में बताया और वहां बढती मंगहाई से अपने गेस्ट हाउस के थोड़ा मंहगा होने को वाजिब ठहराने की कोशिश की ... खैर सोमवार का दिन था और मुझे ऑफिस भी ज़रूर जाना था , इसलिए टैक्सी वाले को १ घंटे का समय दे कर मैं तैयार हो , लंच टाइम तक ऑफिस पहुँच गया ... ऑफिस में सबसे पहली मुलाक़ात "गौरी" से हुई , जिस ने मेरी टैक्सी और गेस्ट हाउस का प्रबंध किया था ... थोडी ही देर में "जैक" भी लंच से वापस आ गया ... मैं यहाँ उसी की जगह लेने आया था ... थोडी देर बात कर हम ने अपना काम शुरू किया और शाम होने तक "जिमुत" ( ऑफिस -हेड ) से मुलाक़ात कर गेस्ट हाउस वापस लौट आया... जैसे सुना था वैसे ही पाया ... शाम को जब ७ बजे हम दोनों बाहर घूमने आए तो देखा लगभग सभी कुछ बंद हो गया था ... हम दोनों को ये बहुत ही अजीब लगा , क्योंकि ऐसे माहौल के हम लोग आदीनही है ... खैर दोनों थक चुके थे इस लंबे सफर से सो खाना खा कर सो गये ... यहाँ कहना होगा गेस्ट हाउस में खाना बहुत ही अच्छा था... गेस्ट हाउस के मालिक की पत्नी ख़ुद खाना बनाती थी ...
इस तरह मोरिशस का पहला दिन पूरा हुआ ... अब आगे के दिनों का इंतज़ार था ...

Saturday, March 14, 2009

मोरिशस का सफर ...


बंगलोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे शाम को ६:३० पर हमारी फ्लाईट थी , जिस के लिए हम ४:०० बजे हवाई अड्डे पहुँच गये और सारी औपचारिकताए पूरी कर , फ्लाईट बोर्डिंग का इंतज़ार करने लगे... ये "अमीरात" की फ्लाईट थी और समय पर बंगलोर से चल दी ...

हमारी फ्लाईट पहले दुबई जानी थी और वहां से हमे दूसरी फ्लाईट लेनी थी ... फ्लाईट ठीक समय ९:०० रात को दुबई पहुँच गई .... यहाँ से दूसरी फ्लाईट २:३० (देर रात ) थी... हमारे पास लगभग ४:३० घंटे थे ... हम दोनों जल्दी से अपने टर्मिनल पहुँच गये ...

दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बहुत ही बडा है और उनता ही खूब सुरती से बनाया गया है ... वहां की एक एक चीज़ में खूब सुरती और नज़ाकत साफ़ झलकती है ... वहां के बाज़ार " ड्यूटी फ्री " की चकाचौंध देखते ही बनती है ... ये बाज़ार " सोने के जेवर " , इत्र , तम्बाको , कोस्माटिक समान , कांच का समान , घडिया और इलेक्ट्रॉनिक के समान से भरा पूरा है ... यहाँ पर खरीद दारी का अपना ही अनूठा अनुभव है ... हम शायद वापसी के समय ये अनुभव ले :)...

दूसरी फ्लाईट का समय हो चला था और हम दोनों उसके लिए तैयार थे ... फ्लाईट में बैठ कर थोडी देर में हम दोनों कब सो गये पता नही चला .... सुबह मोरिशस के करीब पहुँच कर आँख खुली और बहार देखा तो मारीशियस का नीला समंदर दिखाई दिया... वास्तव में ये मंजर बहुत ही सुंदर था... मोरिशस की खूबसूरती की तारीफ़ यों ही नही की जाती ... बे-शक आसमान से देखने पर बहुत खूब सूरत लगने में कुछ देशों में से एक देश है : मोरिशस...

सुबह १०:०० बजे फ्लाईट मोरिशस पहुँची और सब औपचारिकता पूरी कर हम दोनों हवाई अड्डे के बाहर आए ... हमारे लिए टैक्सी इंतजार कर रही थी ... उसमे बैठ कर हम दोनों अपने " गेस्ट हाउस" पहुंचे ... रास्ते भर हम दोनों मोरिशस की खूब सुरती को निहारते जा रहे थे ...

आगे एक लंबा सफर हमारा इंतज़ार कर रहा था ... हाँ हमे साल भर जो रहना है यहाँ ...

वो आखरी दिन मैसूर के ...


अगस्त'०८ में जब मोरिशस जाने की बात पहली बार हुई तो खुशी का ठीकाना न था ... पता था हमारे लिए बाहर जाने की उम्मीद काफ़ी कम थी , मगर बिल्कुल न थी ऐसा भी नही था ... जैसा की बोला गया था वैसे मैंने मोरिशस के बारे में जानकारी जुटाईऔर अपनी तरफ़ से जाने की हरी झंडी दिखा दी ... बात इसके बाद एक ठंडे बस्ते में चली गई और मै भी अपनी जगह चुप चाप समय का इंतज़ार करने लगा ...
अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में मुझे जाने की हरी झंडी मिली... जल्दी जल्दी से हम दोनों (मैं और निशु ) ने घर का समान ठीकाने लगया ... वास्तव में श्री-मति जी ने समान बाँधने में जो फुर्ती और कुशलता दिखाई , वो तारीफ़ के काबिल थी ...
खैर , ९ नवम्बर'०८ का दिन आ पहुँचा जिस दिन हमे मोरिशस के लिए निकलना था ... लोबो आंटी (हमारे पड़ोसी ), अपने दोस्तों (अभिजीत , अभिषेक , वैभव , लिजा और मधु ) को मिल कर और उनकी शुभकामनाये ले कर हम दोनों निकल पडे अपने नये सफर को...
घर पर भी सभी को जाने का पता था और सभी खुश थे ... सब को छोड़ कर जाने से दिल भारी ज़रूर था , मगर ऐसे अवसर नही छोडे जाते यही बात दिल में लिए हम खुश थे ...